राजपत्रिका : दुर्ग नगर निगम के इतिहास में पहली बार भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने

दुर्ग : शिवनाथ नदी के किनारे बसे दुर्ग को शहर के व्यवस्थित विकास के लिए 1981 में नगर पालिक निगम का दर्जा दिया गया. साल 1981 में नगर निगम बनने से लेकर आज तक दुर्ग नगर निगम का हर चुनाव अपने आप में खास होता रहा है, लेकिन इस बार यह चुनाव और भी खास हो चुका है, क्योंकि इस बार सिर्फ दो प्रत्याशी मैदान पर हैं. हर बार की तरह नगर निगम दुर्ग पर शहर सरकार के लिए त्रिकोणीय मुकाबला होता था, लेकिन इस बार कोई निर्दलीय प्रत्याशी मैदान पर नहीं है. यानी इस बार भाजपा-कांग्रेस में से कोई एक पार्टी का महापौर बनेगा. बता दें कि दो बार के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी कांग्रेस को पीछे कर दूसरे नंबर पर रहे हैं ।
बताया जा रहा कि इस बार निर्दलीय प्रत्याशियों को रोकने भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने पूरा दमखम लगा दिया था. इसके चलते एक भी निर्दलीय प्रत्याशी नगर निगम दुर्ग के महापौर के लिए सामने नहीं आया. इससे भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों का वोट बंटने से बच गया. भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में महापौर का अप्रत्यक्ष चुनाव हुआ. इस नियम को बदलते हुए वर्तमान साय सरकार ने प्रत्यक्ष चुनाव और ईव्हीएम को लागू कराया है. दुर्ग शहर में होने वाले नगर निगम चुनाव को समझना है तो इसके इतिहास को जानना जरूरी है ।
1981 में दुर्ग को नगर निगम का दर्जा दिया गया. यह वह दौर था जब कांग्रेस दुर्ग को अपना गढ़ बना चुकी थी, क्योंकि यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और दुर्ग के पहले सांसद वासुदेव श्रीधर किरोलीकर के बाद दुर्ग के दूसरे सांसद मोहन बाकलीवाल बने. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले वासुदेव चंद्राकर, सांसद चंदूलाल चंद्राकर और मुख्यमंत्री और राज्यपाल रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता स्व. मोतीलाल वोरा जैसे नेता मध्यप्रदेश कांग्रेस में अपनी पैठ रखने वाले नेताओं का संगठन था. वहीं भाजपा और जनसंघ के कार्यकर्ता डॉ. वामन वासुदेव पाटणकर, दाऊ कल्याण सिंह अग्रवाल, धनराज देशलहरा, बीसे यादव ( स्व. हेमचंद यादव के भाई), सांसद ताराचंद साहू, नंदू परिहार, महेश गुप्ता धीरे-धीरे दुर्ग में जनसंघ के बाद भाजपा को मजबूत करने में लगे थे. इन नेताओं के संरक्षण में आज के कई नेताओं राजनीति का पाठ पढ़ा है, जो सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हैं ।