रायपुर

राजपत्रिका : पद्मश्री सुरेंद्र दुबे के निधन से छत्तीसगढ़ में शोक की लहर, अपनी हास्य कविताओं से देश-विदेश में दिल जीतने वाले कवि ने ली अंतिम सांस

रायपुर  :  छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध हास्य कवि और पद्मश्री से सम्मानित डॉ. सुरेंद्र दुबे का आज हार्टअटैक से निधन हो गया वे रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में भर्ती थे, जहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है वे अपनी कविताओं के जरिए लोगों को हंसी का उपहार देने वाले विरले रचनाकार थे ।

डॉ. सुरेंद्र दुबे न केवल कवि थे, बल्कि पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक भी थे। उन्होंने व्यंग्य और हास्य के माध्यम से जीवन की जटिलताओं को सहजता से प्रस्तुत किया और जनमानस में एक गहरी छाप छोड़ी। उनकी कविता में हास्य के साथ-साथ सामाजिक चेतना का भी स्पर्श होता था। कोरोना काल में जहां पूरा देश डर और तनाव से जूझ रहा था, उस वक्त भी उन्होंने अपनी रचनाओं से लोगों को हंसाकर हौसला दिया।

उनका जन्म 8 जनवरी 1953 को छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में हुआ था। उन्होंने कई मंचीय प्रस्तुतियों और टेलीविजन कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। वर्ष 2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। अमेरिका में भी उन्होंने काव्य पाठ किया और वहां उन्हें ‘छत्तीसगढ़ रत्न’ से सम्मानित किया गया था।

राजपत्रिका : पद्मश्री सुरेंद्र दुबे के निधन से छत्तीसगढ़ में शोक की लहर, अपनी हास्य कविताओं से देश-विदेश में दिल जीतने वाले कवि ने ली अंतिम सांस KSHITITECH

उनकी एक प्रसिद्ध रचना – “हम हंसते हैं, लोगों को हंसाते हैं, इम्यूनिटी बढ़ाते हैं…” – आज भी लोगों के बीच हिम्मत और मुस्कान की मिसाल है।

हास्य का पर्याय बने सुरेंद्र दुबे

डॉ. सुरेंद्र दुबे की कविताओं में आम जिंदगी की छोटी-बड़ी बातों को व्यंग्य के पुट के साथ पेश किया जाता था। उनकी शैली सरल, सरस और सहज थी, जो आम जनमानस को तुरंत प्रभावित करती थी। मंच पर जब वे आते, तो श्रोताओं की हंसी रुकने का नाम नहीं लेती। उन्होंने कवि सम्मेलनों में वर्षों तक लोगों को गुदगुदाया और गंभीर विषयों को भी हंसते-हंसते कहने की कला में माहिर थे, उनकी कविता में ना तो केवल हास्य होता था, ना ही केवल व्यंग्य – बल्कि दोनों का ऐसा मिश्रण होता था जो सीधे दिल में उतरता था। खासकर कोरोना काल की उनकी कविता ने लाखों लोगों को तनाव से बाहर निकलने का जरिया दिया।

कोरोना काल में भी हंसी के दूत बने

जब पूरा देश महामारी की मार से जूझ रहा था और चारों तरफ डर का माहौल था, तब डॉ. दुबे ने अपनी हास्य कविता के ज़रिए समाज को न केवल सकारात्मकता दी, बल्कि स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने का संदेश भी दिया, उनकी उस कविता की पंक्तियां – “हंसो-हंसाओ और एंटीबॉडी बनाओ” – एक तरह से महामारी के दौरान लोगों का मनोबल बढ़ाने का माध्यम बन गईं। इस रचना को सोशल मीडिया पर लाखों लोगों ने शेयर किया और सराहा।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी छाए

छत्तीसगढ़ से निकलकर डॉ. सुरेंद्र दुबे ने भारत और अमेरिका समेत कई देशों में अपनी कविता का जादू बिखेरा नॉर्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन द्वारा उन्हें ‘छत्तीसगढ़ रत्न’ सम्मान से नवाजा गया था। अमेरिका में उन्होंने दर्जनों शहरों में हिंदी कविता पाठ किए और वहां के प्रवासी भारतीयों को अपनी मिट्टी की महक सुनाई, उनकी कविताएं भाषा की सीमाएं लांघकर दिलों तक पहुंचीं यही कारण रहा कि विदेशों में भी उनके प्रशंसकों की कमी नहीं थी।

पद्मश्री से नवाजे गए थे दुबे

साल 2010 में भारत सरकार ने डॉ. सुरेंद्र दुबे को हास्य कविता और समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलाने के योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया। यह छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का क्षण था, उन्होंने पांच किताबें भी लिखीं, जिनमें हास्य और सामाजिक व्यंग्य की भरमार है। उनका लेखन न केवल मनोरंजन करता था, बल्कि समाज को आईना भी दिखाता था। उनकी साहित्यिक यात्रा नवोदित कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

साहित्यिक विरासत को हमेशा याद रखा जाएगा

डॉ. सुरेंद्र दुबे अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताएं, उनके व्यंग्य, उनके मंच पर कहे गए चुटीले संवाद – यह सब साहित्यिक विरासत के रूप में हमेशा जीवित रहेंगे, उनकी शैली और सोच आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगी। राज्य सरकार सहित देशभर के साहित्य प्रेमियों ने उनके निधन पर शोक जताया है और कहा है कि “एक युग समाप्त हुआ है, पर उसकी गूंज बनी रहेगी।”

उनकी अंतिम यात्रा में साहित्य जगत और राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र के अनेक प्रमुख लोग शामिल होने पहुंचे हैं छत्तीसगढ़ ने एक ऐसा रत्न खो दिया, जिसकी भरपाई असंभव है ।

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